Sunday, March 17, 2013

I have lost my father..................... Saturday 19-04-2013



कुछ शब्द मेरे अपने (पिता के लिए )
मेरे पिता का नाम राम है पूरा नाम ‘श्री राम मोहन अग्रवाल’ …………..दादाजी व् दादी माँ उन्हें बड़े प्रेम से’ राम’ कहकर पुकारते थे
उनके आज्ञाकारी ,सुशील ,गुणवान पुत्र ‘राम’……दादाजी का कहना था कि सतयुग के राम ने कलियुग में भी उनके किसी सद-कार्य के कारण फिर से इस धरती प़र जन्म लिया है
गुप्तजी ने लिखा था कि……….राम तुम इश्वर नहीं मानव हो क्या,
प़र मैं कहती हूँ पिताश्री,
राम! तुम मानव नहीं इश्वर हो क्या?
सदैव सहज मुस्कान,निस्पृहता, मौन ,उदात्त ,निस्संगता से,
अपने भीतर लबालब स्नेह से भरे,
इस धरती प़र, संबंधों प़र,स्नेह- निर्झर से बहते ,
मैं जानती हूँ ………..
.आपका मौन अभिमान नहीं,मनन होता है ,
निरावेगी रूप के पीछे , प्रेम का आवेग होता है,
सहज , सरल , व्यक्तित्व ,
बेहद निर्मल , विनयशील है,
पिता! आप ही नम्र आत्मीय ,
मर्मज्ञ प्रबुद्ध हैं ,
दिखावटी संभ्रांत नहीं ,
एकान्तिक भोले-भंडारी हैं ,
जो अपनी उपस्तिथि से ,
अपना परिवेश अनजाने में ही, सुवासित करते रहतें हैं,
…………………………….अगर दो में से एक भी संतान को,
आपके कुछ गुण उधार लेकर (हकपूर्वक) उनमें डाल सकूं ,
अगर जीवन-समर में ,
कहीं भीं कभी भी स्वम जीत कर आपका ,
मान रख सकूं ,
तो हे राम !
राम -सुता होने , का दायित्व निभा सकूं,…………………………..
पिता के जन्म-दिन प़र, ५ सितम्बर

the poetess Dr.Sweet Angel



आंसू जो उभरें है मोती बन  पलकों पे मेरी ,
चूमा  जो तुमने तो तकदीर बन गए मेरी  



तुम्हे छु  कर  आ रही है  पवन .........
मुझे  गुदगुदा रही है पवन 
कि जैसे तुम यहीं हो ..........
मेरे पास ही कहीं हो ......


एक प्यारा सा रिश्ता है प्यार का  


कहीं लिखा भी है कहीं पढ़ा भी है

कहीं देखा भी है ,कहीं सुना भी है ,


कभी जाना सा कभी अनजाना

फिर भी क्यों इतना अपना सा है 

कुछ मासूम सा,कुछ अलबेला सा ,

कुछ अपना सा ,कुछ बेगाना सा ,

कुछ चंचल सा,कुछ शर्मीला सा 
कुछ शोख  सा,कुछ संजीदा  सा 
कुछ उलझा हुआ,कुछ सुलझा हुआ 
कुछ मस्ती   भरा ,कुछ खफा-खफा 
कभी मान दिया .ऐतबार किया 
सब  कुछ एक-दूजे प़र वार दिया 
कुछ तेरा  है ,कुछ मेरा है,
ये प्यारा सा रिश्ता है प्यार का .



'ओ मेरे हृदय ' बस उस ही अपना जो  मुझे खुशियों के गीत गाना सिखाये .....
'ओ मेरे मन ' बस उस ही गले लगा जो मुझे खिलखिलाना बताये .........
उस छोड़ता जा ,उस भूलता जा जिनसे कभी आँख में आंसू आयें .........





प्यार  से भरी,
प्यारी सी ,
जिंदगी से भरी,
जैसी तुम हो,
प्रेम से पगी,
ऐसी ही तो हो,
प्यार के साथ,
मनोहारी सी,
तुम ही तो हो ,
मेरी शालिनी 
मेरी मन-मोहिनी 

yesssssss I feel proud to be an Indian .........


हाँ ! गर्व है मुझे भारतीय होने प़र
मुझे गर्व है अपनी हिंदी प़र,
अपने माथे की बिंदिया प़र,
हाथों की मेहँदी प़र,
खनखनाती चूड़ियों प़र,
अपने भारतीय आचार-विचार
और परम्परा प़र
धर्म-संस्कृति,भाषा-साहित्य
और सभ्यता प़र ,
जो बीज बोये मेरी  दादी -नानी
और माँ ने
मेरे भोले मन प़र ,
सम्मान और संस्कारों के
खुद भूखे रहकर
अतिथि का पेट भरने  के,
बड़ों को अपना- पन
और छोटों को प्यार देने के
अपनी जड़ों से बंधकर भी ,
ऊँची उड़ान भरने के,
शिक्षा का सही उपयोग करने के ,
जग में अपना हुनर दिखाने के,
तो क्यों ना कहूँ …?
कि हाँ ! गर्व है मुझे भारतीय होने प़र

हाँ ! गर्व है मुझे भारतीय होने प़र


Hellooooooo India ,




हाँ ! गर्व है मुझे भारतीय होने प़र Sweet Angel ka Sweet World

हाँ ! गर्व है मुझे भारतीय होने प़र
मुझे गर्व है अपनी हिंदी प़र,
अपने माथे की बिंदिया प़र,
हाथों की मेहँदी प़र,
खनखनाती चूड़ियों प़र,
अपने भारतीय आचार-विचार
और परम्परा प़र
धर्म-संस्कृति,भाषा-साहित्य
और सभ्यता प़र ,
जो बीज बोये मरी दादी -नानी
और माँ ने
मेरे भोले मन प़र ,
सम्मान और संस्कारों के
खुद भूखे रहकर
अतिथि का पेट भने के,
बड़ों को अपना- पन
और छोटों को प्यार देने के
अपनी जड़ों से बंधकर भी ,
ऊँची उड़ान भरने के,
शिक्षा का सही उपयोग करने के ,
जग में अपना हुनर दिखाने के,
तो क्यों ना कहूँ …?
कि हाँ ! गर्व है मुझे भारतीय होने प़र

मैं तड़प रही मीन संमान,
जल से बाहर फेंक दी गयी,
सब कहें अंह,सूरज-चाँद -सितारे,
फूल- फल सब तेरे पास,
फिर कहे तू हो गयी उदास,
जीवन के अनगिनत रूप यंहा,
जल के भीतर ये सम्पदा कंहा,
भौतिक जगत के आनंद सभी ,
पर ………
तू घुटकर मरने को तैयार अभी,
न रस, न सुगंध,न रूप,से सरोकार,
मुझे तो बस जाना है जल के उस पार,
मैं जल क़ी रानी , जल मेरा प्रियतम,
जल मैं ही रानी मेरा निवास,
वो है अब समीप मेरे,
बाकी न बची अब कोई आस:

हिंदी हूँ मैं !


क्योंकि हिंदी हूँ मैं ,हिंदी हूँ मैं !

हिंद  में पैदा हुए ,
हिंद की हवा में जिए,
हिंदी में ही खाया,
पहना ,बोला और चला ,
प़र जब इतराने की बारी आई,
तो कंधे चौड़े  किये अंग्रेजी  में ?
अगर रख सको तो अस्तित्व हूँ मैं,
छुपा दो तो एक निशानी हूँ मैं,
गलती से खो दिया..........
तो केवल एक कहानी हूँ मैं,
अंग्रेजी के पत्थर खाकर भी,
मुस्कुराने की आदत है मुझे ,
दुनिया की नज़र में कुछ चुभी सी,
मगर गर्व की दास्ताँ हूँ मैं,
मेरे अपने चाहें ना पहचाने अब मुझको,
प़र उनकी रग-रग में बसी ,
उनके गौरव की आग हूँ मैं ,
मेरे कर्णधारों कुछ तो सोचो ,
तुम्हारे बुजुर्गों का  मन-प्राण हूँ मैं,
क्योंकि हिंदी हूँ मैं ,हिंदी हूँ मैं .

Dr.Shalini Agam खुशियों को जियो।

खुशियों को जियो।उनका स्वागत करो, करो,अपने से नीचे वाले को देख कर संतोष करो कि उसकी जगह होते तो क्या करते ..दुःख
आतें हैं .........दुःख चले जातें हैं .......दोनों द्वार खोल कर रखो ........कि अगर कोई परेशानी ज़िन्दगी के भीतर दाखिल हो भी
गयी तो
शीघ्र ही पिछले रस्ते से ज़िन्दगी से बाहर खदेड़ देना ही असली जांबाजी है ..............
खुशियों की न कोई परिभाषा है न कोई तोल-मोल ...........बस महसूस करने की बात है ..........क्योंकि खुशियों के पास क्या ,
क्यों,किसके लिए,किसके पास,कौनसी,कहाँ ,जैसे पैमाने नहीं होते .............खुशियाँ नहीं हैं अभी ......तो क्या उसके सपने तो हैं
...............अरे हम वो सपने इतने दिल से देखेंगे ............इतने करीब से महसूस करेंगे की पूरी सृष्टि उन सपनो को पूरा करने में
जुट जाएगी ............. हमारी जिद के आगे उसे झुकना ही पड़ेगा ..........क्योंकि वो अपरम्पार ,वो परम सृष्टि भी मजबूर जो
जाएगी हमारे हिस्से की खुशियाँ हमें लौटाने को
.............और हमारी खुशियों की जिद के आगे उस असीम सत्ता को घुटने टेकने ही पड़ते हैं ........फिर जो ऊपर से रिम-झिम
खुशियों की बरसात होती है ........कभी अजमा कर देखिये .......उसमे सराबोर होकर नाचने न लग जाएँ तो कहना ..
....