कुछ शब्द मेरे अपने (पिता के लिए )
मेरे पिता का नाम राम है पूरा नाम ‘श्री राम मोहन अग्रवाल’ …………..दादाजी व् दादी माँ उन्हें बड़े प्रेम से’ राम’ कहकर पुकारते थे
उनके आज्ञाकारी ,सुशील ,गुणवान पुत्र ‘राम’……दादाजी का कहना था कि सतयुग के राम ने कलियुग में भी उनके किसी सद-कार्य के कारण फिर से इस धरती प़र जन्म लिया है
गुप्तजी ने लिखा था कि……….राम तुम इश्वर नहीं मानव हो क्या,
प़र मैं कहती हूँ पिताश्री,
राम! तुम मानव नहीं इश्वर हो क्या?
सदैव सहज मुस्कान,निस्पृहता, मौन ,उदात्त ,निस्संगता से,
अपने भीतर लबालब स्नेह से भरे,
इस धरती प़र, संबंधों प़र,स्नेह- निर्झर से बहते ,
मैं जानती हूँ ………..
.आपका मौन अभिमान नहीं,मनन होता है ,
निरावेगी रूप के पीछे , प्रेम का आवेग होता है,
सहज , सरल , व्यक्तित्व ,
बेहद निर्मल , विनयशील है,
पिता! आप ही नम्र आत्मीय ,
मर्मज्ञ प्रबुद्ध हैं ,
दिखावटी संभ्रांत नहीं ,
एकान्तिक भोले-भंडारी हैं ,
जो अपनी उपस्तिथि से ,
अपना परिवेश अनजाने में ही, सुवासित करते रहतें हैं,
…………………………….अगर दो में से एक भी संतान को,
आपके कुछ गुण उधार लेकर (हकपूर्वक) उनमें डाल सकूं ,
अगर जीवन-समर में ,
कहीं भीं कभी भी स्वम जीत कर आपका ,
मान रख सकूं ,
तो हे राम !
राम -सुता होने , का दायित्व निभा सकूं,…………………………..
पिता के जन्म-दिन प़र, ५ सितम्बर