मैं नारी हूँ, मैं जननी हूँ, मैं रचनाधार हूँ देखो!
कभी मैं छाँव ममता की, कभी श्रंगार हूँ देखो!
मैं कोमल हूँ मुझे किन्तु कभी कमजोर न कहना,
मैं शत्रु के लिए खंजर, कभी तलवार हूँ देखो!
मुझे पत्थर समझकर, तुम हथोड़ा क्यूँ चलाओगे!
नहीं लकड़ी हूँ मैं जिसको, जो चाहो तुम जलाओगे!
तुम्हारी ही तरह मानव की संरचना है ये मेरी,
मेरा अपमान करके तुम नहीं सम्मान पाओगे!
मैं शत्रु को जला दूंगी, मैं वो अंगार हूँ देखो!
मैं नारी हूँ, मैं जननी हूँ, मैं रचनाधार हूँ देखो...
नहीं मैं मांस का टुकड़ा, नहीं उपभोग की वस्तु!
नहीं आनंद का साधन, नहीं प्रयोग की वस्तु!
गलत नजरों से देखोगे, तो उनको फोड़ डालूंगी,
नहीं मदिरा की बोतल हूँ, नहीं उपयोग की वस्तु!
तुम्हारी ही तरह सम्मान की हकदार हूँ देखो!
मैं नारी हूँ, मैं जननी हूँ, मैं रचनाधार हूँ देखो!"
कभी मैं छाँव ममता की, कभी श्रंगार हूँ देखो!
मैं कोमल हूँ मुझे किन्तु कभी कमजोर न कहना,
मैं शत्रु के लिए खंजर, कभी तलवार हूँ देखो!
मुझे पत्थर समझकर, तुम हथोड़ा क्यूँ चलाओगे!
नहीं लकड़ी हूँ मैं जिसको, जो चाहो तुम जलाओगे!
तुम्हारी ही तरह मानव की संरचना है ये मेरी,
मेरा अपमान करके तुम नहीं सम्मान पाओगे!
मैं शत्रु को जला दूंगी, मैं वो अंगार हूँ देखो!
मैं नारी हूँ, मैं जननी हूँ, मैं रचनाधार हूँ देखो...
नहीं मैं मांस का टुकड़ा, नहीं उपभोग की वस्तु!
नहीं आनंद का साधन, नहीं प्रयोग की वस्तु!
गलत नजरों से देखोगे, तो उनको फोड़ डालूंगी,
नहीं मदिरा की बोतल हूँ, नहीं उपयोग की वस्तु!
तुम्हारी ही तरह सम्मान की हकदार हूँ देखो!
मैं नारी हूँ, मैं जननी हूँ, मैं रचनाधार हूँ देखो!"
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