Sunday, March 17, 2013

I have lost my father..................... Saturday 19-04-2013



कुछ शब्द मेरे अपने (पिता के लिए )
मेरे पिता का नाम राम है पूरा नाम ‘श्री राम मोहन अग्रवाल’ …………..दादाजी व् दादी माँ उन्हें बड़े प्रेम से’ राम’ कहकर पुकारते थे
उनके आज्ञाकारी ,सुशील ,गुणवान पुत्र ‘राम’……दादाजी का कहना था कि सतयुग के राम ने कलियुग में भी उनके किसी सद-कार्य के कारण फिर से इस धरती प़र जन्म लिया है
गुप्तजी ने लिखा था कि……….राम तुम इश्वर नहीं मानव हो क्या,
प़र मैं कहती हूँ पिताश्री,
राम! तुम मानव नहीं इश्वर हो क्या?
सदैव सहज मुस्कान,निस्पृहता, मौन ,उदात्त ,निस्संगता से,
अपने भीतर लबालब स्नेह से भरे,
इस धरती प़र, संबंधों प़र,स्नेह- निर्झर से बहते ,
मैं जानती हूँ ………..
.आपका मौन अभिमान नहीं,मनन होता है ,
निरावेगी रूप के पीछे , प्रेम का आवेग होता है,
सहज , सरल , व्यक्तित्व ,
बेहद निर्मल , विनयशील है,
पिता! आप ही नम्र आत्मीय ,
मर्मज्ञ प्रबुद्ध हैं ,
दिखावटी संभ्रांत नहीं ,
एकान्तिक भोले-भंडारी हैं ,
जो अपनी उपस्तिथि से ,
अपना परिवेश अनजाने में ही, सुवासित करते रहतें हैं,
…………………………….अगर दो में से एक भी संतान को,
आपके कुछ गुण उधार लेकर (हकपूर्वक) उनमें डाल सकूं ,
अगर जीवन-समर में ,
कहीं भीं कभी भी स्वम जीत कर आपका ,
मान रख सकूं ,
तो हे राम !
राम -सुता होने , का दायित्व निभा सकूं,…………………………..
पिता के जन्म-दिन प़र, ५ सितम्बर

the poetess Dr.Sweet Angel



आंसू जो उभरें है मोती बन  पलकों पे मेरी ,
चूमा  जो तुमने तो तकदीर बन गए मेरी  



तुम्हे छु  कर  आ रही है  पवन .........
मुझे  गुदगुदा रही है पवन 
कि जैसे तुम यहीं हो ..........
मेरे पास ही कहीं हो ......


एक प्यारा सा रिश्ता है प्यार का  


कहीं लिखा भी है कहीं पढ़ा भी है

कहीं देखा भी है ,कहीं सुना भी है ,


कभी जाना सा कभी अनजाना

फिर भी क्यों इतना अपना सा है 

कुछ मासूम सा,कुछ अलबेला सा ,

कुछ अपना सा ,कुछ बेगाना सा ,

कुछ चंचल सा,कुछ शर्मीला सा 
कुछ शोख  सा,कुछ संजीदा  सा 
कुछ उलझा हुआ,कुछ सुलझा हुआ 
कुछ मस्ती   भरा ,कुछ खफा-खफा 
कभी मान दिया .ऐतबार किया 
सब  कुछ एक-दूजे प़र वार दिया 
कुछ तेरा  है ,कुछ मेरा है,
ये प्यारा सा रिश्ता है प्यार का .



'ओ मेरे हृदय ' बस उस ही अपना जो  मुझे खुशियों के गीत गाना सिखाये .....
'ओ मेरे मन ' बस उस ही गले लगा जो मुझे खिलखिलाना बताये .........
उस छोड़ता जा ,उस भूलता जा जिनसे कभी आँख में आंसू आयें .........





प्यार  से भरी,
प्यारी सी ,
जिंदगी से भरी,
जैसी तुम हो,
प्रेम से पगी,
ऐसी ही तो हो,
प्यार के साथ,
मनोहारी सी,
तुम ही तो हो ,
मेरी शालिनी 
मेरी मन-मोहिनी 

yesssssss I feel proud to be an Indian .........


हाँ ! गर्व है मुझे भारतीय होने प़र
मुझे गर्व है अपनी हिंदी प़र,
अपने माथे की बिंदिया प़र,
हाथों की मेहँदी प़र,
खनखनाती चूड़ियों प़र,
अपने भारतीय आचार-विचार
और परम्परा प़र
धर्म-संस्कृति,भाषा-साहित्य
और सभ्यता प़र ,
जो बीज बोये मेरी  दादी -नानी
और माँ ने
मेरे भोले मन प़र ,
सम्मान और संस्कारों के
खुद भूखे रहकर
अतिथि का पेट भरने  के,
बड़ों को अपना- पन
और छोटों को प्यार देने के
अपनी जड़ों से बंधकर भी ,
ऊँची उड़ान भरने के,
शिक्षा का सही उपयोग करने के ,
जग में अपना हुनर दिखाने के,
तो क्यों ना कहूँ …?
कि हाँ ! गर्व है मुझे भारतीय होने प़र

हाँ ! गर्व है मुझे भारतीय होने प़र


Hellooooooo India ,




हाँ ! गर्व है मुझे भारतीय होने प़र Sweet Angel ka Sweet World

हाँ ! गर्व है मुझे भारतीय होने प़र
मुझे गर्व है अपनी हिंदी प़र,
अपने माथे की बिंदिया प़र,
हाथों की मेहँदी प़र,
खनखनाती चूड़ियों प़र,
अपने भारतीय आचार-विचार
और परम्परा प़र
धर्म-संस्कृति,भाषा-साहित्य
और सभ्यता प़र ,
जो बीज बोये मरी दादी -नानी
और माँ ने
मेरे भोले मन प़र ,
सम्मान और संस्कारों के
खुद भूखे रहकर
अतिथि का पेट भने के,
बड़ों को अपना- पन
और छोटों को प्यार देने के
अपनी जड़ों से बंधकर भी ,
ऊँची उड़ान भरने के,
शिक्षा का सही उपयोग करने के ,
जग में अपना हुनर दिखाने के,
तो क्यों ना कहूँ …?
कि हाँ ! गर्व है मुझे भारतीय होने प़र

मैं तड़प रही मीन संमान,
जल से बाहर फेंक दी गयी,
सब कहें अंह,सूरज-चाँद -सितारे,
फूल- फल सब तेरे पास,
फिर कहे तू हो गयी उदास,
जीवन के अनगिनत रूप यंहा,
जल के भीतर ये सम्पदा कंहा,
भौतिक जगत के आनंद सभी ,
पर ………
तू घुटकर मरने को तैयार अभी,
न रस, न सुगंध,न रूप,से सरोकार,
मुझे तो बस जाना है जल के उस पार,
मैं जल क़ी रानी , जल मेरा प्रियतम,
जल मैं ही रानी मेरा निवास,
वो है अब समीप मेरे,
बाकी न बची अब कोई आस:

हिंदी हूँ मैं !


क्योंकि हिंदी हूँ मैं ,हिंदी हूँ मैं !

हिंद  में पैदा हुए ,
हिंद की हवा में जिए,
हिंदी में ही खाया,
पहना ,बोला और चला ,
प़र जब इतराने की बारी आई,
तो कंधे चौड़े  किये अंग्रेजी  में ?
अगर रख सको तो अस्तित्व हूँ मैं,
छुपा दो तो एक निशानी हूँ मैं,
गलती से खो दिया..........
तो केवल एक कहानी हूँ मैं,
अंग्रेजी के पत्थर खाकर भी,
मुस्कुराने की आदत है मुझे ,
दुनिया की नज़र में कुछ चुभी सी,
मगर गर्व की दास्ताँ हूँ मैं,
मेरे अपने चाहें ना पहचाने अब मुझको,
प़र उनकी रग-रग में बसी ,
उनके गौरव की आग हूँ मैं ,
मेरे कर्णधारों कुछ तो सोचो ,
तुम्हारे बुजुर्गों का  मन-प्राण हूँ मैं,
क्योंकि हिंदी हूँ मैं ,हिंदी हूँ मैं .

Dr.Shalini Agam खुशियों को जियो।

खुशियों को जियो।उनका स्वागत करो, करो,अपने से नीचे वाले को देख कर संतोष करो कि उसकी जगह होते तो क्या करते ..दुःख
आतें हैं .........दुःख चले जातें हैं .......दोनों द्वार खोल कर रखो ........कि अगर कोई परेशानी ज़िन्दगी के भीतर दाखिल हो भी
गयी तो
शीघ्र ही पिछले रस्ते से ज़िन्दगी से बाहर खदेड़ देना ही असली जांबाजी है ..............
खुशियों की न कोई परिभाषा है न कोई तोल-मोल ...........बस महसूस करने की बात है ..........क्योंकि खुशियों के पास क्या ,
क्यों,किसके लिए,किसके पास,कौनसी,कहाँ ,जैसे पैमाने नहीं होते .............खुशियाँ नहीं हैं अभी ......तो क्या उसके सपने तो हैं
...............अरे हम वो सपने इतने दिल से देखेंगे ............इतने करीब से महसूस करेंगे की पूरी सृष्टि उन सपनो को पूरा करने में
जुट जाएगी ............. हमारी जिद के आगे उसे झुकना ही पड़ेगा ..........क्योंकि वो अपरम्पार ,वो परम सृष्टि भी मजबूर जो
जाएगी हमारे हिस्से की खुशियाँ हमें लौटाने को
.............और हमारी खुशियों की जिद के आगे उस असीम सत्ता को घुटने टेकने ही पड़ते हैं ........फिर जो ऊपर से रिम-झिम
खुशियों की बरसात होती है ........कभी अजमा कर देखिये .......उसमे सराबोर होकर नाचने न लग जाएँ तो कहना ..
....

Dr.Shalini Agam अपने क्रोध को पालना सीखो ,इसे सही वक़्त प़र ,सही situation में express करना सीखो,


अपने क्रोध को पालना सीखो ,इसे सही वक़्त प़र ,सही situation में express करना सीखो,
फालतू में अपनी energy waste करना सबसे बड़ी बेवकूफी है .... क्रोध करना है तो अपनी हीन भावना से करो ................चीखना -चिल्लना है तो अपने खोये आत्म-विश्वास प़र चिल्लाओ ......................अगर किसी को दूर करना है अपनी ज़िन्दगी से तो अपनी बे-वज़ह की मायूसी को दूर करो ...........क्यों ऊपर वाले को नाराज़ करतो जिसने सब कुछ दिया है .....फिर भी कभी thanks नहीं निकलता तुम्हारे मुंह से....... .

You are the only one who will love you just as you are, except for

God!

तुम जैसे हो .....वैसे ही खुद से प्यार करो ...........क्योंकि तुम सबसे ' स्पेशल ' हो ..............

जो लोग अपनी रिस्पेक्ट नहीं करते दुनिया भी उन्हें नहीं पूछती है,

एक छोटी सी बात .मगर एकदम सच्ची ,जब तुम खुद को ही पसंद नहीं करोगे तो कैसे उम्मीद करते हो कि

सामने वाला तुम्हे पसंद कल ले

हर पल अपने में ही कमियां खोजता रहना मैं एसा-मैं वैसा और चाहते ये हो की दुनिया कहे वाह -वाह

क्या

व्यक्तित्व है..........कितना सुंदर है............ ये कितना गुनी है ............ वगहरा -वगहरा
,
आईने में खुद को देखो और सराहो अपने आप को,

अपने कामो पर दृष्टि डालो और शाबाशी दो खुद को,

जब भी कुछ म्हणत से हांसिल करो तो अपनी हिम्मत खुद बढाओ .....................

'वाह मैंने ये कर दिखाया',

आत्म-प्रशंसा दूसरो के सामने चाहे मत करो,पर अपने लिए, अपनी ख़ुशी के लिए अकेले में तो कर ही

सकते

हो।
देखो कितना मनोबल बढेगा ,कुछ कर दिखने का हौसला,कठिन से कठिन परिस्तिथि में भी मुस्कुरा

कर

कुछ कर गुजरने का साहस..................

और हाँ क्रोध करना है तो खुद पर करना जब भी कोई नकारत्मक विचार आये

जब भी खुद को दूसरे से हीन समझो

झटक डालना अपने इस ख्याल को कि मैं अमुक व्यक्ति से कमतर हूँ ,


ये बात अलग है की अमुक व्यक्ति की खूबियाँ आपसे भिन्न हों ,क्योंकि इस सृष्टि मैं हर प्राणी एक दूसरे

से कुछ तो भिन्नता लिए होता ही है ,

अब गायक किशोर कुमार की क्रिकेटर धोनी से तुलना नहीं कर सकते............... न ही श्री आब्दुल

कलाम जी को ए .

.आर .रहमान से क्योंकि ऊपर वाले ने हर किसी को एक खास काबिलियत ,एक खास गुण से सुशोभित

किया किया है ,न ही सब प्राणी नैन-नक्श में सामान होतें हैं ,इसलिए खुद को स्पेशल समझो,सबसे

भिन्न

सबसे प्यारा सबसे न्यारा ,

क्योंकि तुम जैसे हो ................... वैसे ही प्रिय हो एकदम खास ,........एकदम अलग
/

जब भी गुस्सा आये ,झुझलाहट आये कि सामने वाला तुमसे किसी बात में श्रेष्ठ कैसे हो गया ?...............आगे

कैसे

निकल गया ? ..................


इस विचार को तुरंत निकाल फेंको ,और उस नकारात्मक विचार को जोर से क्रोधित होते हुए कहो कि ......."भागो

यहाँ से ,तुम् जैसे विचारों की मेरे इस सुंदर संसार में कोई स्थान नहीं मैं जो हूँ जैसा भी हूँ बहुत भला हूँ


बहुत विशेष हूँ . मेरी अपनी खासियत हैं ,अपनी विशेषताएं हैं और मुझे खुद से बहुत प्यार है" ...फिर देखना

इस इतराहत के साथ ही चेहरे पर कितनी खिलावट आएगी ,और आप आत्म-सम्मान से झूमते नज़र

आयेंगे

जब आत्म -विश्वास बढ़ता है तो हम जो भी करतें हैं उसमे सफलता मिलती जाती है और हम स्वेम में

कितने


प्रसन्न होतें हैं ज़रा आजमा कर तो देखिये दोस्तों ........

आपकी प्रतिक्रिया के इंतज़ार में आपकी अपनी डॉ शालिनी अगम ........







Let someone love you just as you are. As flawed as you might be, as unattractive as you might

feel, as unaccomplished as you might think you are; let someone love you just as you are. And let

that someone be you.

by

Dr. ShaliniAgam
 —

प्रसन्नता ही हमारी संजीवनी है …….


प्रसन्नता ही हमारी संजीवनी है …….

प्रसन्नता ही हमारी संजीवनी है ………
मेरी एक अन्तरंग सहेली जो अत्यंत दुखी ,निराश, अनिंद्रा और अपच का शिकार थी उसने निश्चय किया की वह अब मेरी तरह ही हँसेगी,हर हाल में खुश रहेगी . दिन में हर -पल बस वही बातें सोचेगी जिससे हसीं आये.
भले ही उसके पास हँसने का कोई उपयुक्त कारण हो न हो .
अपने आस-पास का माहौल खुशनुमा बनाये रखेगी. उसने मुझसे पूछा ,”डॉ.शालिनी अगर मैं मन से दुखी हूँ ,तो कोशिश करने प़र भी मुझे हंसी नहीं आती ,मैं क्या करूँ ..” तब मैंने उसे निम्न बातें समझायीं ………..और परिणाम -स्वरुप वह धीरे-धीरे स्वस्थ होने लगी ,उसके परिवारजन उसमे आये बदलाव के कारण आश्चर्य में पड़ गए. पहले-पहल तो उन्हें कुछ समझ नहीं आया पर धीरे -धीरे घर का माहौल बदलने लगा और सभी दिल खोलकर हँसने लगे ………….. हर – पल दुखी दिखने वाला परिवार आज सबसे ज्यादा खुश दिखाई देता है .
अब आप पूछोगे की मैंने उसको क्या बताया……..??
 —

Dr.Shalini Agam

मैं नारी हूँ, मैं जननी हूँ, मैं रचनाधार हूँ देखो!
कभी मैं छाँव ममता की, कभी श्रंगार हूँ देखो!
मैं कोमल हूँ मुझे किन्तु कभी कमजोर न कहना,
मैं शत्रु के लिए खंजर, कभी तलवार हूँ देखो!
मुझे पत्थर समझकर, तुम हथोड़ा क्यूँ चलाओगे!
नहीं लकड़ी हूँ मैं जिसको, जो चाहो तुम जलाओगे!
तुम्हारी ही तरह मानव की संरचना है ये मेरी,
मेरा अपमान करके तुम नहीं सम्मान पाओगे!
मैं शत्रु को जला दूंगी, मैं वो अंगार हूँ देखो!
मैं नारी हूँ, मैं जननी हूँ, मैं रचनाधार हूँ देखो...
नहीं मैं मांस का टुकड़ा, नहीं उपभोग की वस्तु!
नहीं आनंद का साधन, नहीं प्रयोग की वस्तु!
गलत नजरों से देखोगे, तो उनको फोड़ डालूंगी,
नहीं मदिरा की बोतल हूँ, नहीं उपयोग की वस्तु!
तुम्हारी ही तरह सम्मान की हकदार हूँ देखो!
मैं नारी हूँ, मैं जननी हूँ, मैं रचनाधार हूँ देखो!"

नारी द्वारा नारी के लिए


नमस्ते भारतवर्ष
उद्गार
नारी द्वारा नारी के लिए
मैं एक नारी जो भ्रम नहीं एक सत्य है ,जड़ नहीं चेतन है,
मैं कल्पना रूप नहीं यथार्थ -रूप हूँ . भावी पीढ़ी को संस्कार देना ,उन्हें प्रशिक्षित करना और वर्तमान पीढ़ी की अर्धांग्नी बन उसकी पग-पग पर रक्षा करना मेरा दिव्य स्वप्न है।
आदरणीय के प्रति नम्र -भावना ,सेवा - श्रुषा करना व् जहाँ भी संभव हो जैसी भी आवशयकता हो ......अपने प्रयास व् बल द्वारा उन्हें संरक्षित वातावरण प्रदान करना।
श्रद्धा का विकास कर इस संसार से प्राप्त होने वाले अपरिहार्य कष्टों को सहज रूप से स्वीकार कर पूर्ण समर्पित भाव से जीवन समर में अभूतपूर्व विजय प्राप्त करना ही मेरा परम ध्येय है।
अपनी भावनाओं की हर -क्षण देवहूति सी देती "मैं" केवल पुरुष की दस्ता स्वीकार करने में ही अपनी वास्तविक स्वतंत्रता समझती हूँ .
हर पल .......हर हाल मैं केवल मैं अपनी शाश्वत स्तिथि सी ही स्वीकारती दिखती हूँ ..........
केवल घटनाएँ और चरित्र पृथक-पृथक होतें हैं।
इश्वर ने अनेक अनमोल धरोहर सौपीं हैं मुझे ........
एक ही बार में अनेक चरित्र निभाते हुए कही सामान्य स्तर से बहुत ऊँची उठ जाती हूँ .....
तो कहीं अपनी ही आत्म-सत्ता तलाशती सी रह जाती हूँ ....
यथार्थ के परिपेक्ष्य में जीकर मुझ जैसी अनेक स्त्रियाँ हर घटना को अपनी सी ही आप बीती बतातीं हैं ......
मैं तो केवल प्रेम की कला मैं पारंगत हूँ ....प्रेम करती हूँ ....
अनुरागी चित्त की अभिलाषा भी सदैव अनुराग लोलुप ही होती है।पुरुष के पतन व् अन्य दुखों का कारण कभी न बन सकूँ इसलिए सदैव अपने रूप - लावन्य को मर्यादा के घेरे में बांधे रखा ....
अपने सद्विचारों व् सद्कार्यों से सदैव किसी न किसी रूप में पुरुष की प्रेरणा-स्रोत बनी रही .
अपने देव-तुल्य जीवन-साथी के संघर्ष में पग-पग पर उसकी सहगामिनी बनी रही ....
विकट परिस्थितियों में एक क्षण के लिए भी उसे सम्बलहीन न होने दिया।
व् सदैव उसके चरणों पर समर्पित अपनी अर्चना के मंदिर-द्वार खोले रही
प्रत्येक नारी अपने-आप में पूर्ण है .......इतनी सम्पूर्ण कि पुरुष-प्रेमी को एक बार तो ऐसा प्रतीत होता है। मानो अनेक स्त्रियों के नारीत्व के अलग-अलग गुणों को एक ही नारी में भर दिया गया हो .
आज बस इतना ही .......
आपकी अपनी
डॉ शालिनी अगम
 —

नमस्ते भारतवर्ष
ये उम्मीद का सूरज है,
जगती आशाओं का सूरज है,
बहुत सो लिए हम-तुम यारों,
अब जागने का सवेरा है,
अपनी सुरक्षा आप करनी है ,
किसी मुह न अब ताकना है ,
खुद की हिम्मत आप बनकर
डटकर मुकाबला करना है
अपने हक की इस लड़ाई में ,
खुद ही जीना ,खुद ही मरना है
डॉ स्वीट एंजिल
 — 

dR.Shalini Agam


तुमने कहा था


तुमने कहा था कि दीप जले आओगे


चन्दा तले प्रेम-चिहं माथे पर लेलोगे


सितारों का नेह जब लेगा प्यार की बलाएँ


मेरी गिरी जुल्फों को गालों से हटा दोगे



..........................पर हर रात की तरह


आज भी चौखट पर रख आयीं हूँ दिया


उम्मीद जगी है कि तुम अभी आओगे


टिमटिमाते ,जगमगाते रात के साये में


हम साया बन लिपट-लिपट जाओगे


.उफ़ गयी ये निशा भी भोर हो गयी


दीपक की लौ मन के साथ बुझ गयी


बस इतना तो बता दे ओ हरजाई


भुला दिया प्रिय तुमने मुझको


या तुम्हारे वहां अब रात ही नहीं होती
 

Dr.Shalini aGAM मैं बिटिया हूँ

मैं बिटिया हूँ 


चाहती हूँ मैं भी पंख फैलाये नील गगन में उड़ना,


चाहती हूँ मैं भी अपने हक की लड़ाई लड़ना ,
चाहती हूँ मैं भी आशाओं से भरी झोली भरना ,
चाहती हूँ मैं भी "माँ "सांसे आज़ादी की लेना ,
ओ भारत माता तुम भी तो माँ हो न ??????
कभी भी न खोने दिया अपनी अस्मिता को
कर दिया खाक मेरे इन दुश्मनों को .......
सभी बुरे नहीं हैं माँ सभी कायर नहीं हैं माँ
चाहती हूँ उनकी सरपरस्ती में हिम्मत रखना 

-नम्रता से देवता भी तुम्हारे वश में हो जातें हैं .


नमस्ते भारतवर्ष


अच्छा ये बात तो पक्की है की हम और आप ये सभी बातें बचपन से पढ़ते 





और सुनतें आयें हैं .....प़र हमारा अनुभव बताता है कि जब-जब हमने 








इन सब बातों का अनुसरण किया लाभ भी हमें ही मिला है . हैं ना? फिर 





भी हम वक़्त आने प़र भूल जातें हैं और परेशानियाँ मोल ले लेतें हैं . 





इसलिए जब भी हम मन को संयत कर और थोड़ी सी प्रसन्नता के साथ 





,स्थिर होकर भविष्य की कल्पना करें फिर उस प़र अमल करना प्रारंभ 





करें या वर्तमान की पेचीदा स्तिथियों से निबटने की सही योजना 





कार्यान्वित करें तो परिणाम और भी बेहतर आयेंगे


When you have a happy and positive frame of mind , 





you set in motion opportunities that wil ebanle you to 





achieve the things you want most of Always find an 





abundance of things to love about your life, yourself, 





and all those all.....................................





सफलता का द्वार खोलने के लिए बस कुछ बातों प़र अमल करना होगा 





............हम सभी जानतें हैं मगर भूल जातें हैं


मधुर व्यवहार .............हम सभी का है और उस हर हाल में बरकरार 





रखना हमारी ज़िम्मेदारी है .


सहानुभूति ........ किसको पसंद नहीं ,इसके द्वारा तो हम दुश्मन को 





भी अपना बना लेतें हैं .


प्रसन्न -मुखारविंद .......देखो ना मुस्कुराते चेहरे प़र कौन ना फ़िदा होगा 





.अपनी हर बात मनवाने का एक अचूक नुस्खा है ये.


आलोचना का त्याग...........निंदा करके हम अपना और दूसरे दोनों का 





मूड खराब करतें हैं .जब किसी से कोई परेशानी हुई तब तो हुई अब बार-





बार उस दोहरा कर क्यों अपना कीमती वक़्त बर्बाद करतें हैं ,और क्यों 





दिल में जलन पैदा करतें हैं ,जो पसंद नहीं ,जिसकी आदतें पसंद नहीं 





उन्हें अपने जीवन में कम से कम जगह दीजिये ,हर-पल कुढ़े से अच्छा है 





उस situation में पड़ा ही ना जाये


-व्यक्तित्व को निखारने का प्रयत्न ...........वाह ! अपने को निखरने के 





लिए इससे बढ़िया कुछ हो नहीं सकता


-दूर-दृष्टि ..........हमारा आज और कल सवारने के लिए दूर-दृष्टि से 





देखिये ...क्या सही है क्या गलत ........सोच -समझ कर ही किसी बात 





का निर्णय लीजिये


- धर्म -निरपेक्षता........बहुत शांति पैदा करती है समाज में


-अभिमान का त्याग............किस बात का अभिमान करना है 





,.....अगर हमसे तुच्छ है कोई { हमारी नज़र में , वैसे इस जगत में कोई 





प्राणी तुच्छ नहीं हर एक में कोई ना कोई विशेषता है } तो दृष्टि घुमाइए 





आपसे श्रेष्ठ भी बहुत हैं ...जो आपको अपने से छोटा मान सकतें हैं .


- सिद्धांतों का पालन मानव का धर्म है .....और सिद्धांतों का पालन ना 





करने से हम अपना आज और आने वाली पीढ़ी का कल खराब कर सकतें 





हैं .......


- प्रसिद्द मनोविज्ञानी (अज्ञात) के अनुसार ...............


'जो व्यक्ति दूसरों में दिलचस्पी नहीं रखता उसे अपने जीवन में 





उदासीनता और कठिनाई का सामना


करना पड़ता है


-झुक कर चलने वाले को रत्न मिलतें हैं ..........रत्न मिलने का मतलब 





यह नहीं की आप रास्ते प़र सिर झुका कर चल दिए तो आपको 





diamonds मिल जायेंगे ....झुकना मतलब 'विनम्रता ' ..स्वभाव -गत 





विनम्रता हर प्रकार से फल दायी है .


-नम्रता से देवता भी तुम्हारे वश में हो जातें हैं .


Dr.Sweet Angel.
 —