Sunday, March 17, 2013

नारी द्वारा नारी के लिए


नमस्ते भारतवर्ष
उद्गार
नारी द्वारा नारी के लिए
मैं एक नारी जो भ्रम नहीं एक सत्य है ,जड़ नहीं चेतन है,
मैं कल्पना रूप नहीं यथार्थ -रूप हूँ . भावी पीढ़ी को संस्कार देना ,उन्हें प्रशिक्षित करना और वर्तमान पीढ़ी की अर्धांग्नी बन उसकी पग-पग पर रक्षा करना मेरा दिव्य स्वप्न है।
आदरणीय के प्रति नम्र -भावना ,सेवा - श्रुषा करना व् जहाँ भी संभव हो जैसी भी आवशयकता हो ......अपने प्रयास व् बल द्वारा उन्हें संरक्षित वातावरण प्रदान करना।
श्रद्धा का विकास कर इस संसार से प्राप्त होने वाले अपरिहार्य कष्टों को सहज रूप से स्वीकार कर पूर्ण समर्पित भाव से जीवन समर में अभूतपूर्व विजय प्राप्त करना ही मेरा परम ध्येय है।
अपनी भावनाओं की हर -क्षण देवहूति सी देती "मैं" केवल पुरुष की दस्ता स्वीकार करने में ही अपनी वास्तविक स्वतंत्रता समझती हूँ .
हर पल .......हर हाल मैं केवल मैं अपनी शाश्वत स्तिथि सी ही स्वीकारती दिखती हूँ ..........
केवल घटनाएँ और चरित्र पृथक-पृथक होतें हैं।
इश्वर ने अनेक अनमोल धरोहर सौपीं हैं मुझे ........
एक ही बार में अनेक चरित्र निभाते हुए कही सामान्य स्तर से बहुत ऊँची उठ जाती हूँ .....
तो कहीं अपनी ही आत्म-सत्ता तलाशती सी रह जाती हूँ ....
यथार्थ के परिपेक्ष्य में जीकर मुझ जैसी अनेक स्त्रियाँ हर घटना को अपनी सी ही आप बीती बतातीं हैं ......
मैं तो केवल प्रेम की कला मैं पारंगत हूँ ....प्रेम करती हूँ ....
अनुरागी चित्त की अभिलाषा भी सदैव अनुराग लोलुप ही होती है।पुरुष के पतन व् अन्य दुखों का कारण कभी न बन सकूँ इसलिए सदैव अपने रूप - लावन्य को मर्यादा के घेरे में बांधे रखा ....
अपने सद्विचारों व् सद्कार्यों से सदैव किसी न किसी रूप में पुरुष की प्रेरणा-स्रोत बनी रही .
अपने देव-तुल्य जीवन-साथी के संघर्ष में पग-पग पर उसकी सहगामिनी बनी रही ....
विकट परिस्थितियों में एक क्षण के लिए भी उसे सम्बलहीन न होने दिया।
व् सदैव उसके चरणों पर समर्पित अपनी अर्चना के मंदिर-द्वार खोले रही
प्रत्येक नारी अपने-आप में पूर्ण है .......इतनी सम्पूर्ण कि पुरुष-प्रेमी को एक बार तो ऐसा प्रतीत होता है। मानो अनेक स्त्रियों के नारीत्व के अलग-अलग गुणों को एक ही नारी में भर दिया गया हो .
आज बस इतना ही .......
आपकी अपनी
डॉ शालिनी अगम
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