Sunday, March 17, 2013

मैं तड़प रही मीन संमान,
जल से बाहर फेंक दी गयी,
सब कहें अंह,सूरज-चाँद -सितारे,
फूल- फल सब तेरे पास,
फिर कहे तू हो गयी उदास,
जीवन के अनगिनत रूप यंहा,
जल के भीतर ये सम्पदा कंहा,
भौतिक जगत के आनंद सभी ,
पर ………
तू घुटकर मरने को तैयार अभी,
न रस, न सुगंध,न रूप,से सरोकार,
मुझे तो बस जाना है जल के उस पार,
मैं जल क़ी रानी , जल मेरा प्रियतम,
जल मैं ही रानी मेरा निवास,
वो है अब समीप मेरे,
बाकी न बची अब कोई आस:

No comments:

Post a Comment