Tuesday, March 5, 2013

Dr.Shalini Agam poetess...

बस कुछ पल मेरे लिए भी
सम्मान का मोह भी है
अपमान का भय भी
प्रसिद्धि की चाह भी है
घर की ज़िम्मेदारी भी
प्रसिद्धि को चाहिए
समय और थोडा पैसा भी

कुछ दोस्त भी 

और कम्पूटर  भी

कुछ समय

जो घर ग्रहस्थी से चुरा लूँ

 या उधर ही मांग लूँ 

उनसे जो मेरे अपने हैं

 आँखों के सपने हैं 

पल दो पल अपने लिए

 जो इस चार-दिवारी के भीतर ही

 मुझे मुझ से मिला दें

मेरे होने का एहसास करा दें



2 comments:

  1. तुम सुगन्धित फूल जैसी, तुम समर्पित एक नदी हो!
    अब मैं तुमसे क्या छुपाऊं, तुम हमारी जिंदगी हो!
    मैंने जाना है तेरे संग, प्रेम का क्या अर्थ होता,
    मुझको धरती पे दिखे रब, सामने जो तुम यदि हो!

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  2. kitne sunder shabd kahe " dev" aapne mere liye .........shukriya dil se

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